तारीफ़
जब दिल की बात ज़ुबान पर आये
तारीफ़
जब दिल की बात ज़ुबान पर आती है
और दूसरे को एहसास होता है
आपकी नज़रों में क्या मायने हैं उनका
तारीफ़ ख़ुशी देती है
मन में दबी कौतुहल को शांत करती है
क्या सही में आप उसे चाहते हैं
इस प्रश्न पर विराम लगाती है
तारीफ़ रिश्तों की खुलेपन को दर्शाती है
रिश्तों में कोई मतभेद ना हो
तब ही दिल की अच्छी बातें ज़ुबान पर आती हैं
और तारीफ़ का रूप ले दूसरे को भाती हैं
अगर रिश्तों में कड़वाहट हो
तारीफ़ ना निकलेगी ज़ुबान से
और दिल की बात दिल में ही रह जाएगी
और रिश्तों की कड़वाहट यूँ ही बरक़रार रहेगी
रिश्तों को इस क़दर सुधारो तुम
दिल की बात दिल में दबी ना रहे
परिचय हो उसका बाहर की दुनिया से
तारीफ़ का रूप ले वो दूसरे एवं स्वयं को ख़ुशी पहुँचाये
जब किसी की तारीफ़ करो
तो आँखें चमक जाती हैं उसकी
और उन आँखों के सहारे दिल में प्रवेश पाते हैं आप उसके
इतना कुछ कर गुज़रता है एक तारीफ़
जम कर तारीफ़ करो
जो बात दिल में है उसे ज़ुबान पर लाओ
रिश्तों की कड़वाहट ख़त्म होने का संकेत है ये तारीफ़
और दूसरों के दिल में प्रवेश पाने का रास्ता है ये तारीफ़
इतने फ़ायदे हैं तारीफ़ के
क्यों इसे अपने अंदर समाए बैठे हो
खुल कर तारीफ़ करो
और दिल की बात दूसरे तक पहुँचाओ