किसी की चाहत हो बेपनाह

पर वो तुम्हारे करीब नहीं

Utpal Kumar
1 min readOct 12, 2024
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किसी की चाहत हो बेपनाह
पर वो तुम्हारे करीब नहीं
मन बेचैन हो उठता है
उसकी बस एक झलक पाने को

कभी कभी झलक पाना संभव नहीं
बस सन्देश से काम चलाना पड़ता है
एक सन्देश भेज इंतज़ार करना पड़ता है
उसके सन्देश के वापस आने का

ये सन्देश भेजने और पाने के बीच का समय
है बेहद व्याकुलता वाला
मन को कुछ और करने की इच्छा नहीं
बस उसके सन्देश का इंतज़ार होता है

इतनी चाहत है उसकी
कि खोने का डर समा गया है अन्दर
वो मेरी नहीं तो क्या करूंगा मैं
इसने ही व्याकुलता को जन्म दिया है

सोचता हूँ व्याकुल होना सही नहीं
पर क्या करूँ मेरे बस में कुछ नहीं
जब तक उधर से सन्देश ना आता है
व्याकुलता मन को जकड़ कर रखती है

उसे पाना संभव नहीं
ये सन्देश का खेल भी कुछ दिनों का है
पता नहीं कैसे संभालूंगा मैं खुद को
जब ये रिश्ता ही खत्म हो जाएगा

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Utpal Kumar

Interested in the psychology behind human functioning. I write on a variety of topics with most of them dealing with personal development | MS in CS from UCSD